एक झंझावात
उठ खड़ी हुई थी
एक बड़ी चुनौती
के साथ
मिटा देंगे, गिरा देंगे
उन आरूढ़
मान्यताओं को
लोक प्रचलित
परंपराओं को
निस्तेज दर्द भरे
सम्बन्धों को
निर्जन कर दूँ
अट्टहासों के साथ
पर वो दर्द
फुट न सका
बह गया
आँसुओं के साथ
और
समय के साथ
तूफान भी
ठंडा हो चला
और घिर गया
अपने ही उठाये
विवर्त में
जो
चला था क्षितिज को नापने
गिर गया धरातल ही नहीं
किसी खाई में
सम्माहित हो गया
महासागर के गहरे तल में
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